दिनांक : 13 अक्टूबर 2024

दिनांक : 13 अक्टूबर 2024

आज का पंचांग   


सूर्योदय का समय : प्रातः 06:21

सूर्यास्त का समय : सायं 05:53

 

चंद्रोदय का समय : दोपहर 03:20

चंद्रास्त का समय : रात्रि 02:33 (14 अक्टूबर)


तिथि संवत :-

दिनांक - 13 अक्टूबर 2024

मास - आश्विन

पक्ष - शुक्ल पक्ष

तिथि - दशमी रविवार प्रातः 09:08 तक रहेगी

अयन -  सूर्य दक्षिणायण

ऋतु -  शरद ऋतु

विक्रम संवत - 2081

शाके संवत - 1946

सूर्यादय कालीन नक्षत्र :-

नक्षत्र - धनिष्ठा नक्षत्र रात्रि 02:51 तक रहेगा इसके बाद शतभिषा नक्षत्र रहेगा

योग - शूल योग रात्रि 09:26 तक रहेगा इसके बाद गण्ड योग रहेगा

करण - गर करण प्रातः 09:08 तक रहेगा इसके बाद वणिज करण रहेगा

ग्रह विचार :-

सूर्यग्रह - कन्या

चंद्रग्रह - मकर

मंगलग्रह - मिथुन

बुधग्रह - तुला

गुरूग्रह - वृष

शुक्रग्रह - तुला

शनिग्रह - कुम्भ

राहु - मीन

केतु - कन्या राशि में स्थित है

* शुभ समय *

अभिजित मुहूर्त :-

प्रातः 11:44 से दोपहर 12:30 तक  रहेगा

रवि योग :-

प्रातः 06:21 से रात्रि 02:51 तक  रहेगा

विजय मुहूर्त :-

दोपहर 02:02 से दोपहर 02:49 तक  रहेगा

गोधूलि मुहूर्त :-

सायं 05:53 से सायं 06:18 तक  रहेगा

निशिता मुहूर्त :-

रात्रि 11:42 से रात्रि 12:32 तक  रहेगा

ब्रह्म मुहूर्त :-

प्रातः 04:41 से प्रातः 05:31 तक रहेगा


* अशुभ समय * 

राहुकाल :-

सायं 04:27 से सायं 05:53 तक  रहेगा

गुलिक काल :-

दोपहर 03:00 से सायं 04:27 तक  रहेगा

यमगण्ड :-

दोपहर 12:07 से दोपहर 01:34 तक  रहेगा

दूमुहूर्त :-

सायं 04:21 से सायं 05:07 तक  रहेगा

वर्ज्य :-

प्रातः 08:11 से प्रातः 09:41 तक  रहेगा

भद्रा :-

सायं 07:59 से प्रातः 06:21 (14 अक्टूबर) तक  रहेगा

पञ्चक :-

दोपहर 03:44 से प्रातः 06:21 (14 अक्टूबर) तक  रहेगा

दिशाशूल :-

पश्चिम दिशा की तरफ रहेगा यदि जरुरी हो तो चॉकलेट खाकर यात्रा कर सकते है

चौघड़िया मुहूर्त :-

दिन का चौघड़िया 

प्रातः 06:21 से 07:47 तक उद्वेग का

प्रातः 07:47 से 09:14 तक चर का

प्रातः 09:14 से 10:40 तक लाभ का

प्रातः 10:40 से 12:07 तक अमृत का

दोपहर 12:07 से 01:34 तक काल का

दोपहर 01:34 से 03:00 तक शुभ का

दोपहर बाद 03:00 से 04:27 तक रोग का

सायं 04:27 से 05:53 तक उद्वेग का चौघड़िया  रहेगा


रात का चौघड़िया

सायं 05:53 से 07:27 तक शुभ का

रात्रि 07:27 से 09:00 तक अमृत का

रात्रि 09:00 से 10:34 तक चर का

रात्रि 10:34 से 12:07 तक रोग का

अधोरात्रि 12:07 से 01:41 तक काल का

रात्रि 01:41 से 03:14 तक लाभ का

प्रातः (कल) 03:14 से 04:48 तक उद्वेग का

प्रातः (कल) 04:48 से 06:21 तक शुभ का चौघड़िया रहेगा

 आज जन्मे बच्चों का नामाक्षर :-  


समय
  पाया  
  नक्षत्र  
  राशि  
जन्माक्षर

04:28 am
से
10:07 am

ताम्रधनिष्ठा
1
चरण
मकरगा
 
10:08 am
से
03:44 pm

 
ताम्र धनिष्ठा
2
चरण
 मकरगी

03:45 pm
से
09:19 pm


ताम्र धनिष्ठा
3
चरण
कुम्भगू

09:20 pm
से
02:51 am
(14 अक्टूबर)
ताम्र धनिष्ठा
4
चरण
कुम्भगे


आज विशेष :-

दशमी तिथि के स्वामी काल देव जी की पूजा-अर्चना करके उनको खुश करना चाहिए। जिससे काल देव जी की अनुकृपा मनुष्य पर बनी रहे, जीवन में धन-धान्य का भंडार भरा रहे, बुरे समय से रक्षा हो सके और सभी तरह के कामों में किसी तरह की बाधा नहीं आवे।

धनिष्ठा नक्षत्र में अष्ट वसुओं का गंध फल फूल नैवेघ धूप व दीप आदि से पूजन कर व्रत करें तो इच्छित संतान व संपत्ति मिलती है

आज शूल योग में चावल दान करना शुभ फलदायी होता है 

रविवार को सूर्य भगवान को जल चढ़ाकर व्रत करें बिना नमक का भोजन करें तो सूर्य जनित दोष दूर होते है 


* रविवार व्रत की कथा *

पूजा विधि :-

सर्व मनोकानाओ की पूर्ति हेतु रविवार का व्रत श्रेष्ठ है । इस व्रत की विधि इस प्रकार है  प्रातः काल स्नान आदि से निवृत हो स्वच्छ वस्त्र धारण करे। शान्तचित्त होकर परमात्मा का स्मारण करे ! भोजन तथा फलाहार सूर्य के प्रकाश रहते ही कर लेना उचित है । यदि निराहार रहने पर सूर्य छिप जाए तो दूसरे दिन सूर्य उदय होने पर अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करे । व्रत के दिन नमकीन तेलयुत्त भोजन कदापि ना करे इस व्रत को करने से मान-सम्मान बढ़ता है तथा शत्रुओ का क्षय होता है आँख की पीड़ा के अतिरित्त अन्य सब पीड़ाये दूर होती है।

कथा प्रारंम्भ :-

एक बुढिया थी । उसका नियम था प्रति रविवार को सवेरे सवेरे ही स्नान आदि कर घर को गौ के गोबर से लीपकर फिर भोजन तैयार कर भगवान को भोग लगा कर स्वयं भोजन करती थी। ऐसा व्रत करने से उसका घर अनेक प्रकार के धन धान्य से पूर्ण था । श्री हरि की कृपा से घर में किसी प्रकार का विघ्न या दु:ख नही था । सब प्रकार से घर मे आनन्द रहता था । 

इस तरह कुछ दिन बीत जाने पर उसकी एक पड़ोसन जिसकी गौ का गोबर वह बुढ़िया लाया करती थी। विचार करने लगी कि यह वृद्धा सर्वदा मेरी गौ का गोबर ले जाती है । इसलिए अपनी गौ को घर के भीतर बांधने लगी। बुढ़िया को गोबर ना मिलने से रविवार के दिन अपने घर को न लीप सकी। इसलिए उसने न तो भोजन बनाया न भगवान को भोग लगाया तथा स्वयं भी भोजन नही किया। 

इस प्रकार उसने निराहार व्रत किया । रात्रि हो गई और वह भूखी सो गई । रात्रि मे भगवान ने उसे स्वप्न दिया और भोजन न बनाने तथा लगाने का कारण पूछा । वृद्धा ने गोबर न मिलने का कारण सुनाया तब भगवान ने कहा कि माता हम तुमको ऐसी गो देते है जिससे सभी इच्छाएं पूर्ण होती है क्योकि तुम हमेशा रविवार को गौ के गोबर से घर को लीपकर भोजन बनाकर मेरा भोग लगाकर खुद भोजन करती हो । इससे मै खुश होकर तमको वरदान देता हूँ। 

निर्धन को धन और बाँझ स्त्रियों को पुत्र देकर दुःखो को दूर करता हूँ तथा अन्त समय मे मोक्ष देता हूँ। स्वप्न मे ऐसा वरदान देकर भगवान तो अन्तर्धान हो गए और वृद्धा को आँख खुली तो वह देखती है कि आंगन में एक अति सुन्दर गौ और बछड़ा बंधे हुए है । वह गाय और बछड़े को देखकर अतीव प्रसन्न हुई और उसको घर के बाहर बांध दिया और वही खाने को चारा डाल दिया। 

जब उसकी पड़ोसन ने बुढ़िया के घर के बाहर एक अति सुन्दर गौ और बछड़ा देखा तो द्वेष के कारण उसका हृदय जल उठा और उसने देखा कि गाय ने सोने का गोबर किया है तो वह उस गाय का गोबर ले गई और अपनी गाय का गोबर उसकी जगह पर रख गई। वह नित्यप्रति ऐसा ही करती रही और सीधे - साधे बुढ़िया को इसकी खबर नहीं होने दी तब सर्वव्यापी ईश्वर ने सोचा कि चालाक पड़ोसन के कर्म से बुढ़िया ठगी जा रही है 

तो ईश्वर ने संध्या के समय अपनी माया से बहुत जोर की आंधी चला दी। बुढ़िया ने अन्धेरो के भय से अपनी गौ को अन्दर बांध लिया। प्रातः काल जब बुढ़िया ने देखा कि गौ ने सोने का गोबर दिया है तो उसके आश्र्चय की सीमा नही रही और वह प्रतिदिन गऊ को घर के भीतर बांधने लगी। उधर पड़ोसन ने देखा की बुढ़िया गऊ को घर के भीतर बांधने लगी है और उसका सोने का गोबर उठाने का दाँव नहीं चलता तो वह ईर्ष्या और डाह से जल उठी और कुछ उपाय न देख पड़ोसन ने उस देश के राजा की सभा मे जाकर कहा महाराज मेरे पड़ोस मे एक वृद्धा के पास ऐसो गउ है 

जो आप जैसे राजाओं के ही योग्य है. वह नित्य सोने का गोबर देती है आप उस सोने से प्रजा का पालन करिए। वह वृद्धा इतने सोने का क्या करेगी । राजा ने यह बात सुन अपने दूतों को वृद्धा के घर से गऊ लाने की आज्ञा दी। वृद्धा प्रातः ईश्वर का भोग लगा भोजन ग्रहण करने ही जा रही थी कि राजा के कर्मचारियो ने गऊ खोल कर ले गए। वृद्धा काफी रोई - चिल्लाई किन्तु कर्मचारियो के समक्ष कोई क्या कहता । 

उस दिन वृद्धा गऊ के वियोग मे भोजन न खा सकी और रात भर रो-रो ईश्वर से गऊ को पुन: पाने के लिए प्रार्थना करती रही । उधर राजा गऊ को देख कर बहुत प्रसन्न हुआ लेकिन सुबह जैसे ही वह उठा सारा महल गोबर से भरा दिखाई देने लगा । राजा यह देख घबरा गया। भगवान ने रात्रि मे राजा को स्वप्न मे कहा कि हे राजा ! गाय को वृद्धा को लौटाने मे ही तेरा भला है उसके रविवार के व्रत से प्रसन्न होकर मैने उसे गाय दी थी । 

प्रातः होने पर राजा ने वृद्धा को बुलाकर बहुत से धन के साथ सम्मान के सहित गऊ और बछड़ा लौटा दिया। उसकी पड़ोसिन को बुलाकर उचित दण्ड दिया। इतना करने के बाद राजा के महल से गन्दगी दूर हुई । उसी दिन से राजा ने नगरवासियो को आदेश दिया कि राज्य को तथा अपनी समस्त मनोकामनाओ की पूति के लिए रविवार का व्रत करो । व्रत करने से नगर के लोग सुखी जीवन व्यतीत करने लगे । कोई भी बीमारी तथा प्रकृति का प्रकोप उस नगर पर नहीं होता था । सारी प्रजा सुख से रहने लगी                              

नोट :-  दैनिक पंचांग हर सुबह 05:00 बजे से पहले या तक अपडेट किया जाता है